बाबा श्याम का विश्व ख्याती प्राप्त मंदिर – Param Satya – Uttarakhand Varta


देहरादून। श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध गांव है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व ख्याती प्राप्त मंदिर है. हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटू श्याम जी ने द्वापरयुग में श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम श्याम से पूजे जाएँगे। बर्बरीक जी का शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में दफ़नाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। कथा के अनुसार एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
भारत में लाखों मंदिर हैं। हर मंदिर के बनने के पीछे कोई न कोई रहस्‍य छिपा हुआ है। ऐसा ही एक रहस्यमयी और चमत्कारिक मंदिर है खाटू श्‍याम मंदिर। राजस्‍थान के सीकर जिले में स्थित यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। आज लाखों लोग न केवल खाटू बाबा को मानते हैं, बल्कि हर मौके पर यहां भक्‍ताें की भीड़ उमड़ती है। मान्‍यता है कि जो लोग यहां आकर भगवान खाटू के दर्शन करते हैं, उनके जीवन की हर समस्‍या दूर हो जाती है।
बता दें कि बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है। इसलिए लोग यहां अपनी परेशानियां लेकर आते हैं। आज पूरा भारत जिन्‍हें खाटू श्याम बाबा के रूप में पूजता है, असल में वे श्रीकृष्ण का कलयुग अवतार हैं। इसलिए उनका जन्‍म भी कार्तिक शुक्‍ल देवउठनी ग्‍यारस के दिन मनाया जाता है। इस दिन परिसर में विशाल मेला लगता है , जो ग्‍यारस मेला के नाम से मशहूर है। दरअसल, खाटू श्‍याम बाबा द्वापर या महाभारत काल के समय में बर्बरीक के रूप में जाने जाते थे। वे तीन बाण धारी शक्तिशाली योद्धा थे। वे पांडव पुत्र भीम के नाती और घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक की माता का नाम हिडिम्बा था। बताया जाता है कि महाभारत के दौरान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से शीश दान में मांगा था। बर्बरीक ने कुछ सोचे बिना उन्हें अपना शीश दान दे दिया। तब श्रीकृष्ण ने प्रसन्‍न होकर उन्‍हें वरदान दिया था कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे। जो हारा हुआ भक्‍त तुम्‍हारे पास आएगा, तुम उसका सहारा बनोेगे। इसी वजह से उन्‍हें हारे का सहारा कहा जाता है। मान्‍यता के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होते ही श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को शीश को रूपवती नदी में बहा दिया था। जिसके बाद यह खाटू गांव की जमीन में दफन हो गया। एक दिन वहां से गाय गुजरी, तो उसके थन से अपने आप ही दूध बहना लगा। यह देखकर गांव वाले हैरान रह गए और यह खबर खाटू के राजा तक पहुंचाई गई।खाटू के राजा जब यह देखने के लिए उस जगह पहुंचे, तो उन्हें याद आया कि कुछ दिन पहले रात को उन्हें सोते समय एक ऐसा ही सपना आया था। सपने में भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें आदेश दिया था कि एक जगह पर जमीन में शीश दफन है उस जमीन से शीश को निकालकर खाटू गांव में ही स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाना होगा। जिसके बाद खाटू के राजा ने उस जगह की खुदाई करने का आदेश दिया और वहां जमीन से एक शीश निकला। शीश के निकलने के बाद राजा ने उस शीश को खाटू में ही एक जगह पर स्थापित कर मंदिर का निर्माण करा दिया। आज वह मंदिर बाबा खाटू श्याम के नाम से पूरे भारत में मशहूर है।




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